रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी – Rani Laxmibai Biography In Hindi

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आज हमने इस लेख में बात की है रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी (Rani Laxmibai Biography In Hindi), उन्होंने क्यों अंग्रजो के खिलाफ युद्ध किया, ‘डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स’ का झाँसी पर क्या अशर पड़ा, रानी लक्ष्मी बाई को अन्य राज्य से मदत, 10 मई, 1857 को मेरठ में भारतीय सैनिको ने क्या किया था, लक्ष्मीबाई की मृत्यु कैसे हुई? इन सब बातो पर बिस्तार से चर्चा की है.

तो आइये जानते है रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी (Rani Laxmibai Biography In Hindi).

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रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी – Rani Laxmibai Biography In Hindi

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी के मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था और माता का नाम भागीरथीबाई सप्रे थी. रानी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम “मणि कर्णिका” थी और इन्हें प्यार से सब “मनु” भी कहेते थे. उनकी माता एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की वेक्ति थी.

Rani Laxmibai Biography In Hindi
Rani Laxmibai Biography In Hindi

जब लक्ष्मीबाई बहुत छोटी थी तब उनके माता का दिहांत हो गया. उनके पिता एक साधारण ब्राह्मण और अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के सेवक थे.

माता के मृत्यु के बाद देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए उनके पिता उन्हें अपने साथ लेकर पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार चले गए. रानी लक्ष्मीबाई बचपन में बहुत चंचल और सुन्दर थी उनके  चंचलता और सुन्दरता के कारन उन्हें लोग “छबेली” नाम से बुलाते थे.

लक्ष्मीबाई की सिक्षा की बात की जाए तो लक्ष्मीबाई ने शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली थी. वहां पर वह धीरे-धीरे बड़ी होती गई और जब 14 बर्ष की हुई तो उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ सन् 1842 में कर दी गई और वे झाँसी की रानी बनी.

विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया. विवाह के बाद सितंबर 1851 को लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन 4 महीने के आयु में ही उनके पुत्र की मृत्यु हो गयी. उसके बाद सन 1853 में धीरे-धीरे राजा गंगाधर राव नेवालकर का स्वस्त बिगड़ने लगा स्वस्त अधिक बिगड़ने के कारण उन्हें दत्तक पुत्र लेने को कहा गया. पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को उनका देहांत हो गया. उनके पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया.

रानी लक्ष्मी बाई ने क्यों अंग्रजो के खिलाफ युद्ध किया – Why did Rani Lakshmi Bai Fight Against the British?

राजा गंगाधर राव नेवालकर ने एक पुत्र को गोद लिया था जिसका नाम दामोदर रखा गया था. राजा के मृत्यु के बाद जब दामोदर को झाँसी का उत्तराधिकारी बनाने का फैसला लिया गया. तो ब्रिटिश राज ने बालक दामोदर को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया.

‘डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स’ का झाँसी पर क्या अशर पड़ा  

 ‘डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स’ (Doctrine of Lapse) नीति के तहत झाँसी राज्य का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में करने का फैसला कर लिया. हालाँकि रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर कर दिया पर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध कोई फैसला हो ही नहीं सकता था. इसलिए बहुत बहस के बाद इसे खारिज कर दिया गया. अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया.

 मुक़दमा ख़ारिज होने के बाद ब्रिटिश सरकार ने 7 मार्च 1854 को राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया. लक्ष्मीबाई को झाँसी का किला छोड़कर जाने के लिए मजबूर कर दिया.

इसके बाद ही रानी लक्ष्मी बाई अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजा दिया और घोषणा कर दी कि मैं अपनी झांसी अंग्रेजों को नही दूंगी.

रानी लक्ष्मी बाई को अन्य राज्य से मदत

 बाद में वे किला को छोड़कर झाँसी के रानी महल में अपने पुत्र के साथ चली गयी. महल छोड़ के जाने के बाद भी उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी और हर हाल में ब्रिटिश सरकार से झाँसी की रक्षा करने का निश्चय किया.

बाद में रानी लक्ष्मीबाई ने कुछ अन्य राज्यों की मदद से एक सेना तैयार की, जिसमे केवल पुरुष ही नहीं,  अपितु महिलाएं भी शामिल थी. जिन्हें युध्द में लड़ने के लिए प्रशिक्षण दिया गया था. उनकी सेना में अनेक महारथी भी थे, जैसे: गुलाम खान, दोस्त खान, खुदा बक्श, सुन्दर–मुन्दर, आदि थे. उनकी सेना में लगभग 14,000 सैनिक थे.

10 मई, 1857 को मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ, जिसका कारण था कि जो बंदूकों की नयी गोलियाँ  थी, उस पर सूअर और गौमांस की परत चढ़ी थी. इससे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर ठेस लगी थी और  इस कारण यह विद्रोह देश भर में फ़ैल गया था .

इस विद्रोह को दबाना ब्रिटिश सरकार के लिए ज्यादा जरुरी था, अतः उन्होंने झाँसी को रानी लक्ष्मीबाई के  अधीन छोड़ने का निर्णय  लिया.

इस दौरान सितम्बर – अक्टूबर, 1857 में रानी लक्ष्मीबाई को अपने पड़ोसी देशो ओरछा और दतिया के  राजाओ के साथ युध्द करना पड़ा क्योकिं उन्होंने झाँसी को कमजोर समझकर झाँसी पर चढ़ाई कर दी थी लेकिन लक्ष्मीबाई ने उन्हें इस युद्ध में कामयाब होने नहीं दिया. इस युद्ध में उनके विद्रोहियो को पराजित होना पड़ा.

यह खबर अंग्रजो को मिलते ही अंग्रजो ने जनवरी 1858 में अंग्रेज सेना झांसी की तरफ बढी. अंगेजो की सेना ने झांसी को चारो ओर से घेर लिया. 24 मार्च 1858 को अंग्रेजो ने भारी बमबारी शुरू कर दी तो लक्ष्मीबाई ने मदद के लिए तात्या टोपे से अपील की और 20000 सैनिको के साथ तात्या टोपे अंग्रेजो से लड़े लेकिन पराजित हो गये. तात्या टोपे से लड़ाई के दौरान अंग्रेज सेना झांसी की तरफ बढ़ रहा था ओर झाँसी को पूरी तरह घेर लिया था.

अंग्रेजो की सैनिक किले में प्रवेश कर गए और मार्ग में आने वाले हर आदमी और औरत को मार दिया. दो सप्ताह तक उनके बीच लड़ाई चलती रही और अंत में अंग्रेजो ने झांसी पर अधिकार कर लिया.

रानी लक्ष्मीबाई किसी तरह अपने घोड़ा बादल पर बैठकर अपने पुत्र को अपनी पीठ पर बांधकर किले से बच निकली लेकिन रास्ते में उसके प्रिय घोड़े बादल की मौत हो गयी. और उनके दो घोड़े बच गए जिनके नाम सारंगी और  पवन था. बाद में रानी लक्ष्मीबाई कालपी पर शरण ले लिया.

22 मई को अंग्रेजो ने कालपी पर भी आक्रमण कर दिया और रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में फिर तात्या टोपे की सेना हार गयी. एक बार फिर रानी लक्ष्मीबाई  और तात्या टोपे को ग्वालियर की तरफ भागना पड़ा.

वे ग्वालियर शहर की रक्षा करने के लिए भारतीय सैनिको के साथ शामिल हो गए. वे अपने सामरिक महत्व के कारण ग्वालियर किले पर कब्जा करना चाहते थे.

विद्रोही ताकतों ने किसी भी विरोध का सामना किए बिना शहर पर कब्जा कर लिया और नाना साहिब को मराठा प्रभुत्व की पेशवा और राव साहिब को अपने राज्यपाल के रूप में घोषित किया.

 लक्ष्मीबाई अन्य विद्रोही नेताओं को बल का बचाव करने के लिए राजी नहीं कर पाई और 16 जून, 1858 को ब्रिटिश सेना ने ग्वालियर पर एक सफल हमला किया.

10 मई, 1857 को मेरठ में भारतीय सैनिको ने क्या किया था

10 मई को मेरठ के छावनी में 85  भारत के जवानों ने आन्दोलन शुरू किया था. इस महा आन्दोलन को भारत के आजादी के  लिए  अंग्रेजो के खिलाफ की गयी आन्दोलनों  में पहला आन्दोलन माना जाता है.

भारतीय ब्रिटिश के खिलाफ कभी आन्दोलन नहीं किया था लेकिन जब ब्रिटिश सर्कार ने झाँसी पर कब्ज़ा करने की कोसिस की तो रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर नाना साहेब, अजीमुल्ला  और तात्यां टोपे जैसे कई ऐसे  देशभक्त ने इस आन्दोलन को अनजाम दिया.

अंग्रेज सरकार की सैनिको में केबल ब्रिटिश सैनिक ही नहीं थे बलकी भारतीय नागरिक भी थे. भारतीय नागरिक अंग्रेजो की सेना में होते हुए भी 10 मई 1857 को मेरठ  कैंट में 50 अंग्रेज सैनिको को मार डाला  था.

लक्ष्मीबाई की मृत्यु कैसे हुई – How Did Laxmibai Die In Hindi

16 जून 1857 को जब ब्रिटिश सरकार ने ग्वालियर पर हमला कर दिया तब लक्ष्मीबाई ने बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय के साथ मिलकर ब्रिटिश सैनिको पर हमला कर दिया. अली बहादुर द्वितीय वह थे जिन्हें लक्ष्मीबाई ने राखी भेजकर अपना भाई बना कर उनसे सहेता मांगी थी.

Rani Laxmibai उनके साथ मिलकर ब्रिटिश सैनिको से खूब लड़ी और इस युद्ध में उनका साथ तात्या टोपे ने भी दी थी . तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया.

 कब्ज़ा करने के बाद भी ब्रिटिश सरकार ने युद्ध jजारी रखा. इस युघ में लक्ष्मीबाई की सैनिक केबल तलवारों से लड़ रहे थे लकिन ब्रिटिश सैनिको के पास बंधुके और टॉप थी इस कारण उनके सैनिक ज्यादा समाई तक लड़ नहीं पाए.

लक्ष्मीबाई अकेले ब्रिटिश सैनिको पर भारी पढ़ गयी लेकिन इस युद्ध में वो बहुत घायल भी हो गयी थी और अंग्रजो से लड़ते- लड़ते  18 जून, 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में वीरगति हासिल की.

लक्ष्मीबाई के मृत्यु के बाद उनके पुत्र दामोदर राव का क्या हुआ

18 जून 1858 को लक्ष्मीबाई के मृत्यु के बाद अंग्रजो ने झाँसी पर पूरी तरह कब्ज़ा कर  लिया. कब्ज़ा करने के बाद अंग्रजो ने दामोदर राव को तड़प-तड़प कर भूके मरने के लिए छोड़ दिया और किसी ने भी उनकी मदत नहीं की इस कारण  दमदोर राव गलियों  और जंगलों में भिक मांग कर अपना गुजरा करते थे.

उसके बाद दमदोर राव 5 मई 1860 को इंदौर चले गए अपने असली माँ के पास. वहा जाने के बाद उनकी माँ ने उनकी शादी करवा दी. लेकिन शादी  के कुछ सालो बाद ही उनकी पत्नी का निधन हो गया. 

बाद में उन्होंने दूसरी शादी कर लि और इस शादी से उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम लक्ष्मण राव था. इसके कुछ साल बाद 28 मई 1906 को 56 वर्ष के उम्र में उनका निधन इंदौर में हो गया.

रानी लक्ष्मीबाई के प्रसिद बिचार – Famous Thoughts of Rani Laxmibai In Hindi

1. “मै अपने झांसी का आत्म समर्पण नही होने दूंगी”

2. “मैदाने जंग मे मारना है, फिरंगी से नही हारना है”

3. “मेरे स्वर्गीय पति ने शान्ति की कला पर अपना ध्यान समर्पित किया”

4. “हम सब एक साथ ग्वालियर मे अंग्रेजों पर हमला करेंगे”

5. “हम स्वयं को तैयार कर रहे है , यह अंग्रेजो से लड़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है”

6. “यह सभी को पता है ये अंग्रेज, सभी धर्म के खिलाफ है”

7. “यदि युद्ध के मैदान मे हार गये और मारे गए तो निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त करेंगे”

8. “हम आजादी के लिए लड़ते है अगर कृष्ण के शब्दो मे कहें तो, हम विजयी होंगे तो विजय के फल का आनन्द लेंगे”

रानी लक्ष्मीबाई पर पुस्तकें – Books on Rani Laxmibai

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FAQs

Q: रानी लक्ष्मीबाई का जन्म कब और कहा हुआ था ?

Ans: रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी के मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था.

Q: रानी लक्ष्मीबाई के पिता का नाम क्या था ?

Ans: रानी लक्ष्मीबाई के पिता का नाम मोरोपंत तांबे था.

Q: लक्ष्मी बाई की मौत कैसे हुई थी?

Ans: लक्ष्मी बाई की मौत अंग्रजो के साथ युद्ध  करते हुए हुई.

Q: झाँसी की रानी का अंतिम युद्ध कहाँ हुआ था?

Ans: झांसी की रानी का अंतिम  युद्ध ग्वालियर में फूलबाग नामक स्थान पर हुआ था ?

Q: रानी लक्ष्मीबाई का नारा क्या था ?

Ans: “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी” रानी लक्ष्मीबाई का नारा था.

Q: रानी लक्ष्मीबाई के पति का नाम क्या था ?

Ans: रानी लक्ष्मी बाई के पति का नाम गंगाधर राव नेवलकर था.

Q: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से क्या मांग थी ?

Ans: उन्होंने गोद लिए पुत्र दामोदर राव को वारिस का अधिकार स्वीकार करने का अनुरोध किया था.

Q: झांसी की रानी के जीवन से हमें क्या प्रेरणा ले सकते हैं ?

Ans: झाँसी की रानी के जीवन से हमे यह प्रेरणा मिलती है. आजादी स्वयं में ही एक मूल्यवान बस्तु है इसको बनाए रखने के लिए हमें कोई भी कीमत चुकानी पड़े हमें पीछे नहीं हटना चाहिए.

Q: रानी लक्ष्मीबाई की शादी किस उम्र में हुई थी

Ans : 14 वर्ष की उम्र में रानी लक्ष्मीबाई की शादी हुई थी.

निष्कर्ष

दोस्तों उमीद करता हु आपको हमारा Rani Laxmibai Biography In Hindi अच्छी लगी होगी. यदी आपको हमारा यह लेख अच्छा लगा है तो अपने दोस्तों के साथ फेसबुक, ट्विटर में जरुर शेयर करे.

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